NIRF Rankings 2025: नई श्रेणियां, कड़े मानदंड और रिसर्च पर सख्ती—उच्च शिक्षा आकलन में बड़ा अपडेट

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NIRF Rankings 2025: नई श्रेणियां, कड़े मानदंड और रिसर्च पर सख्ती—उच्च शिक्षा आकलन में बड़ा अपडेट

भारत की उच्च शिक्षा का सबसे भरोसेमंद पैमाना अपने 10वें साल में पहले से ज्यादा व्यापक और सख्त हो गया है। शिक्षा मंत्रालय ने 4 सितंबर 2025 को नई दिल्ली के भारत मंडपम में NIRF Rankings 2025 जारी कीं और साफ कर दिया कि अब रैंकिंग सिर्फ नाम की नहीं, जवाबदेही की भी होगी। सबसे बड़ा बदलाव—श्रेणियां बढ़कर 17, रिसर्च में रिट्रैक्शन पर नेगेटिव मार्किंग, और सीखने-शिक्षण की गुणवत्ता को मापने के औजार अब ज्यादा सूक्ष्म।

यूनियन एजुकेशन मिनिस्टर धर्मेंद्र प्रधान की मौजूदगी में घोषित इस 10वीं एडीशन में समकालीन जरूरतों को केंद्र में रखा गया—ओपन और स्किल यूनिवर्सिटी की अलग श्रेणी, राज्यों की पब्लिक यूनिवर्सिटीज के लिए समर्पित रैंकिंग, और पहली बार सस्टेनेबल डिवेलपमेंट गोल्स (SDGs) पर ध्यान। टॉप स्लॉट पर बदलाव नहीं—IIT मद्रास ने ओवरऑल में बढ़त बरकरार रखी, IISc बेंगलुरु दूसरे और IIT बॉम्बे तीसरे स्थान पर रहे।

क्या बदला: श्रेणियां और मानदंड

सबसे पहले श्रेणियां। पहले 16 थीं, अब 17। ओवरऑल, यूनिवर्सिटीज, कॉलेजेस, इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट, फार्मेसी, मेडिकल, डेंटल, लॉ, आर्किटेक्चर एंड प्लानिंग, एग्रीकल्चर एंड एलाइड, रिसर्च इंस्टिट्यूशंस और इनोवेशन जैसी पुरानी श्रेणियों के साथ अब चार नई—ओपन यूनिवर्सिटी, स्किल यूनिवर्सिटी, स्टेट पब्लिक यूनिवर्सिटी और SDG कैटेगरी। SDG में 10 संस्थानों को रैंक मिला—मैसेज साफ है: कैंपस की प्रगति पर्यावरण, समाज और गवर्नेंस के भीतर भी मापी जाएगी।

अब पद्धति। NIRF अपनी शुरुआत 2015 से पांच मूल पैरामीटरों पर चलता आया है और इस बार उन्हें और पैना किया गया है:

  • Teaching, Learning & Resources (TLR): छात्र-शक्ति और पीएचडी स्कॉलर्स, स्थायी फैकल्टी के साथ फैकल्टी-स्टूडेंट रेशियो, पीएचडी/एक्सपीरियंस वाले फैकल्टी का मिक्स, फाइनेंशियल रिसोर्सेज का उपयोग, ऑनलाइन-डिजिटल क्षमता, मल्टीपल एंट्री/एग्ज़िट और इंडियन नॉलेज सिस्टम के एकीकरण जैसे सूचक अब ज्यादा स्पष्ट रूप से कैप्चर किए जा रहे हैं।
  • Research & Professional Practice (RP): पब्लिकेशन, सिटेशन, रिसर्च प्रोजेक्ट्स, कंसल्टेंसी और प्रोफेशनल आउटरिच।
  • Graduation Outcomes (GO): प्लेसमेंट, हायर स्टडीज, उद्यमिता, करियर उन्नति—यानी डिग्री के आगे छात्रों का वास्तविक रास्ता।
  • Outreach & Inclusivity (OI): जेंडर और सामाजिक-आर्थिक विविधता, क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व, दिव्यांग समावेशन, और समुदाय से जुड़ाव।
  • Perception: साथियों, अकादमिक जगत, नियोक्ताओं और अन्य स्टेकहोल्डर्स की नजर में संस्थान की विश्वसनीयता।

इस साल एक बड़ा प्रोसीजरल ट्विस्ट आया—रिसर्च पेपर वापसी (retraction) पर नेगेटिव मार्किंग। मतलब अगर किसी संस्थान के पेपर्स गुणवत्ता या नैतिक वजहों से वापस होते हैं तो स्कोर कटेगा। भारत में तेजी से बढ़ते प्रकाशन के बीच यह कदम संकेत देता है कि मात्रा से ज्यादा गुणवत्ता मायने रखेगी। कई विश्वविद्यालय खुद-ही-खुद अपने रिसर्च इकोसिस्टम की आंतरिक ऑडिट पर जोर बढ़ाएंगे—जर्नल चयन से लेकर डेटा इंटेग्रिटी और प्लेगरिज्म चेक तक।

नेशनल बोर्ड ऑफ एक्रेडिटेशन (NBA) की भूमिका पर भी रोशनी पड़ी। रैंकिंग में इस्तेमाल होने वाले संकेतकों का मानकीकरण, डेटा की सुसंगतता और कैटेगरी-वार बेंचमार्किंग में NBA एक सहारा स्तंभ बना हुआ है। हर कैटेगरी में टॉप-100 की सूची, और 101–150 व 151–200 के रैंक-बैंड जारी होते हैं—ताकि संस्थान अपनी स्थिति देख सकें, ट्रेंड समझें और लक्ष्य तय कर सकें।

नई श्रेणियों का मतलब क्या है? ओपन यूनिवर्सिटी के लिए अलग लेंस इसलिए जरूरी था क्योंकि डिस्टेंस और ऑनलाइन मॉडल में टीचिंग डिलीवरी, लर्नर सपोर्ट, एसेसमेंट इंटीग्रिटी और स्केल—चारों बहुत अलग तरह से काम करते हैं। स्किल यूनिवर्सिटीज की कैटेगरी ने वो स्पेस भरा जहां इंडस्ट्री-लिंक्ड, शॉर्ट-टू-मीडियम साइकिल प्रोग्राम्स—जैसे मेक्ट्रॉनिक्स, लॉजिस्टिक्स, हेल्थकेयर टेक्निशियन, रिन्यूएबल एनर्जी टेक्नो—को पारंपरिक ‘डिग्री-केंद्रित’ मैट्रिक्स से अलग समझना जरूरी था। स्टेट पब्लिक यूनिवर्सिटीज को अलग करना भी व्यावहारिक है—ये संस्थान राज्य संसाधनों, क्षेत्रीय जरूरतों और विविध छात्र-प्रोफाइल के बीच काम करते हैं; इन्हें केन्द्रीय वित्तपोषित संस्थानों की सीधी तुलना में देखना अक्सर अन्यायपूर्ण हो जाता था।

SDG कैटेगरी सबसे दिलचस्प है। इसके तहत विशेष तौर पर देखा जाएगा—ग्रीन कैंपस प्रैक्टिसेस (ऊर्जा, पानी, कचरा प्रबंधन), सामाजिक पहुंच (आदिवासी/ग्रामीण समुदायों से जुड़ाव), पाठ्यक्रम में स्थिरता का एकीकरण, लैंगिक समानता की नीतियां, और गवर्नेंस की पारदर्शिता। यह बदलाव संस्थानों को ‘रैंक’ से आगे ‘जिम्मेदार विश्वविद्यालय’ बनने की ओर धकेलता है।

टॉप पर्फॉर्मर्स की बात करें तो IIT मद्रास ने ओवरऑल में अपनी पकड़ बरकरार रखी। IISc बेंगलुरु—रिसर्च के प्रतीक के रूप में—दूसरे स्थान पर, और IIT बॉम्बे तीसरे पर। साल-दर-साल स्थिर प्रदर्शन का मतलब है कि इन संस्थानों ने फैकल्टी गुणवत्ता, रिसर्च इंफ्रास्ट्रक्चर, इंडस्ट्री कनेक्ट और स्टूडेंट आउटकम्स पर निरंतर निवेश बनाए रखा है। यह भी ध्यान रखने योग्य है कि अलग-अलग कैटेगरी में परिदृश्य बदल सकता है—यूनिवर्सिटी, कॉलेज, मैनेजमेंट या रिसर्च की सूची में रुझान अलग दिखते हैं।

NEP 2020 का प्रभाव इस बार के संकेतकों में साफ दिखा—मल्टीपल एंट्री/एग्ज़िट, ऑनलाइन एजुकेशन कैपेबिलिटी, और भारतीय ज्ञान परंपरा (IKS) का एकीकरण अब संस्थागत गुणवत्ता के हिस्से के रूप में देखा जा रहा है। यानी, विश्वविद्यालय अगर क्रेडिट मोबिलिटी, डिजिटल कंटेंट, और स्थानीय ज्ञान-संसाधनों को पाठ्यक्रम में जोड़ते हैं तो उन्हें रैंकिंग में संरचित तरीके से पहचान मिलती है।

डाटा की विश्वसनीयता पर भी ध्यान बढ़ा है। संस्थान अब सेल्फ-डिक्लेयर्ड डाटा के साथ सपोर्टिंग एविडेंस जमा कराते हैं, और क्रॉस-चेकिंग के मैकेनिज्म मजबूत हुए हैं। जहां-जहां गड़बड़ी या ओवर-क्लेमिंग पकड़ी जाती है, वहां कटौती तय है। यह सिग्नल खास है—रैंक चाहिये तो रिकॉर्ड-कीपिंग, ऑडिट ट्रेल और इंटिग्रिटी चाहिए।

असर: विद्यार्थियों से नीति तक

छात्र और अभिभावक इस रैंकिंग को कैसे पढ़ें? पहला नियम—ओवरऑल रैंक से ज्यादा अपने लक्ष्य से मेल खाते कैटेगरी स्कोर पर नजर रखें। इंजीनियरिंग करना है तो इंजीनियरिंग कैटेगरी; क़ानून के लिए लॉ; रिसर्च करियर के लिए रिसर्च इंस्टिट्यूशंस। दूसरा—TLR, RP, GO, OI और परसेप्शन में किस पैरामीटर पर संस्थान मजबूत है, यह देखें। उदाहरण के तौर पर, किसी संस्थान का GO बहुत अच्छा है—तो प्लेसमेंट/हायर स्टडी ट्रैक मजबूत होगा; RP कमजोर है—तो रिसर्च इकोसिस्टम उतना परिपक्व नहीं।

तीसरा—तीन साल का ट्रेंड देखें। रैंक एक सीजन में ऊपर-नीचे हो सकती है; लगातार सुधार भरोसा बढ़ाता है। चौथा—रैंक-बैंड (101–150, 151–200) में आने वाले संस्थान आपके शहर/बजट में हों तो उन्हें भी गंभीरता से देखें; कई बार उभरते संस्थान तेजी से ऊपर आते हैं। पांचवां—OI पर ध्यान दीजिए। विविधता और समावेशन आज सिर्फ नैतिक एजेंडा नहीं, सीखने का असली इंजन है—विविध बैच, विविध दृष्टि।

संस्थानों के लिए NIRF एक दर्पण है—जो अच्छा है, उसे स्केल करें; जो कमजोर है, उसे ठीक करें। टीचिंग-लर्निंग में ब्लेंडेड मोड, छोटे बैच में लैब वर्क, फैकल्टी डेवेलपमेंट, और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर—ये सब सीधे TLR में दिखते हैं। RP सुधारना है तो जर्नल क्वालिटी, रिसर्च मेथड्स, ओपन साइंस प्रैक्टिसेस, एथिक्स ट्रेनिंग और इंडस्ट्री प्रोजेक्ट्स पर ठोस काम करना होगा। GO बढ़ाने के लिए करियर सर्विसेज, इंटर्नशिप पाइपलाइन, एल्युमनाई नेटवर्क और स्टार्टअप सपोर्ट को व्यवस्थित करना पड़ेगा। OI के लिए रिमोट/ग्रामीण छात्रों की पहुंच, स्कॉलरशिप्स, और कैंपस एक्सेसिबिलिटी पर निवेश करना होगा।

पॉलिसी मेकर्स के लिए यह डेटाबेस सोना है। जहां प्रदर्शन पीछे है, वहां क्षमता निर्माण—फैकल्टी रिक्रूटमेंट, रिसर्च ग्रांट्स, स्किल लैब्स—को प्राथमिकता मिल सकती है। राज्य सरकारें अब अपनी पब्लिक यूनिवर्सिटीज को समकक्ष साथियों से तुलनात्मक रूप से देख पाएंगी—बिना IITs/इंस्टीट्यूट ऑफ नेशनल इंपॉर्टेंस की प्रत्यक्ष तुलना के दबाव के। इससे क्षेत्रीय जरूरतों पर केंद्रित नीति बनाना सरल होगा—उदाहरण के लिए, पूर्वी भारत में एग्री-टेक और मत्स्य-आधारित प्रोग्राम्स, तटीय राज्यों में ब्लू इकॉनमी स्किल ट्रैक्स।

इंडस्ट्री के लिए रैंकिंग एक शॉर्टलिस्टिंग टूल है—किस कैंपस में किस डोमेन का टैलेंट reliably मिलता है, कहां रिसर्च पार्टनरशिप बेहतर बनेगी, और किस शहर/राज्य के स्किल यूनिवर्सिटीज से मिड-स्किल जॉब्स के लिए तैयार वर्कफोर्स मिलेगा। खासकर SDG कैटेगरी में दिखने वाले संस्थान ESG-उन्मुख कंपनियों के लिए स्वाभाविक पार्टनर हो सकते हैं।

इतिहास की तरफ देखें। 29 सितंबर 2015 को शुरू हुआ यह फ्रेमवर्क 2016 में पहली रैंकिंग तक पहुंचा। 2017 में कॉलेज कैटेगरी जोड़ी गई। तब से हर साल भागीदारी बढ़ी है—अधिक विश्वविद्यालय, अधिक कॉलेज, और डेटा-रिच सबमिशन। 10वें साल की खास बात है कि NIRF अब किसी ‘एक आकार सब पर फिट’ मॉडल से हटकर न्यू-अज-डाइवर्सिटी को स्वीकार करता है—ओपन, स्किल, स्टेट पब्लिक और SDG कैटेगरी उसका प्रमाण हैं।

यह भी समझना जरूरी है कि NIRF और एक्रेडिटेशन (NAAC/NBA) अलग चीजें हैं। NIRF एक तुलनात्मक रैंकिंग है—यह बताती है कि कौन किससे आगे/पीछे है; एक्रेडिटेशन ‘न्यूनतम गुणवत्ता मानकों’ का प्रमाणन देता है। किसी संस्थान का अच्छा NIRF स्कोर बिना मजबूत एक्रेडिटेशन प्रैक्टिस के टिकाऊ नहीं होगा, और उत्कृष्ट एक्रेडिटेशन के बावजूद अगर आउटकम्स/रिसर्च/समावेशन में निवेश नहीं होगा तो रैंकिंग में उछाल सीमित रहेगा।

सवाल यह भी है कि क्या रैंकिंग सब कुछ कह देती है? नहीं। रैंकिंग संकेत देती है, पूर्ण सत्य नहीं। छोटे, विशेष फोकस वाले संस्थान कभी-कभी मैट्रिक्स में under-represented रह जाते हैं। परसेप्शन का घटक भी समय लेता है—किसी उभरते कॉलेज की अच्छी नौकरी/रिसर्च स्टोरी बाजार में फैलने में दो-तीन साल लग सकते हैं। फिर भी, नेगेटिव मार्किंग जैसे कदमों से शोर कम और सिग्नल ज्यादा मिलने की उम्मीद बढ़ी है।

कैंपस-स्तर पर अगला कदम क्या?—रिसर्च इंटिग्रिटी ऑफिस स्थापित करना, रिट्रैक्शन-रिस्क मैपिंग करना, फैकल्टी-छात्रों के लिए पब्लिकेशन एथिक्स मॉड्यूल बनाना; डेटा मैनेजमेंट और ओपन-एक्सेस नीतियों को औपचारिक रूप देना; ऑनलाइन/ब्लेंडेड टीचिंग के लिए कॉन्टेंट स्टूडियो और इंस्ट्रक्शनल डिजाइन यूनिट खड़ी करना; एल्युमनाई ट्रैकिंग सिस्टम सुधारना; और OI के लिए टार्गेटेड स्कॉलरशिप्स व कम्युनिटी-इंगेजमेंट प्रोजेक्ट्स शुरू करना।

SDG कैटेगरी के लिहाज से विश्वविद्यालय अब अपने कैंपस को ‘लिविंग लैब’ की तरह देखेंगे—ऊर्जा ऑडिट, रेनवॉटर हार्वेस्टिंग, वेस्ट-टू-एनर्जी, बैरियर-फ्री इन्फ्रा, साइकल-फर्स्ट मोबिलिटी, और पाठ्यक्रम में जलवायु/स्थिरता के केस स्टडीज। इससे दो फ़ायदे—स्टूडेंट्स को व्यावहारिक सीख और समुदाय को ठोस लाभ।

ओपन यूनिवर्सिटीज के लिए गुणवत्ता की कुंजी है—लर्नर सपोर्ट। सिर्फ कंटेंट नहीं, काउंसलिंग, प्रॉक्टर्ड असेसमेंट, doubt resolution, और माइक्रो-क्रेडेंशियल्स की स्पष्ट पथ-रचना। NIRF के TLR और GO में इस तरह के इनोवेशन को स्पेस मिल रहा है। स्किल यूनिवर्सिटीज के लिए इंडस्ट्री-को-ऑथर्ड सिलेबस, ऑन-द-जॉब ट्रेनिंग, RPL (Recognition of Prior Learning) और मल्टी-एग्जिट सर्टिफिकेशन स्टैक उनकी असल ताकत बनेंगे—यही चीजें रैंकिंग में भी दिखेंगी।

स्टेट पब्लिक यूनिवर्सिटीज में अक्सर विविध छात्र—पहली पीढ़ी के विद्यार्थी, काम-संग पढ़ाई करने वाले, क्षेत्रीय भाषाओं के साथ सीखने वाले—होते हैं। OI और GO में इन प्रोफाइल्स की ज़रूरतों के हिसाब से सुधार दिखेगा तो यह श्रेणी जल्दी प्रगति कर सकती है। राज्य स्तर पर क्लस्टर यूनिवर्सिटी मॉडल, साझा रिसर्च सेंटर्स और डिजिटल लाइब्रेरीज़ का विस्तार यहां गेम चेंजर बन सकता है।

छात्रों के लिए एक छोटा चेकलिस्ट:

  • अपनी स्ट्रीम की कैटेगरी रैंक/स्कोर देखें—ओवरऑल से भ्रमित न हों।
  • पिछले 3 वर्षों का ट्रेंड और पैरामीटर-वाइज स्ट्रेंथ/वीकनेस नोट करें।
  • OI स्कोर के साथ फीस/स्कॉलरशिप पॉलिसी मिलाकर affordability का आकलन करें।
  • GO मजबूत है?—प्लेसमेंट/हायर स्टडीज/उद्यमिता सपोर्ट का सबूत खोजें (कैरियर सर्विसेज, एल्युमनाई नेटवर्क)।
  • रिसर्च चाहिये तो RP स्कोर और गाइड-टू-स्टूडेंट रेशियो, लैब इंफ्रा और पब्लिकेशन क्वालिटी देखें।

इंडस्ट्री के लिए गाइडलाइंस भी साफ हैं—जिस क्षेत्र में हायरिंग चाहिए, उसी कैटेगरी के टॉप परफॉर्मर्स को टार्गेट करें; SDG-एलाइन्ड कैंपस के साथ ESG प्रोजेक्ट्स पर काम बढ़ाएं; स्किल यूनिवर्सिटीज के साथ अप्रेंटिसशिप और शॉर्ट-टर्म upskilling प्रोग्राम्स बनाएं।

भविष्य के संकेत? रैंकिंग अब स्थिर नहीं, गतिशील होगी। डिजिटल डिलिवरी, AI-सक्षम लर्निंग सपोर्ट, अकादमिक इंटेग्रिटी टूलकिट, और सस्टेनेबिलिटी—ये सब आने वाले वर्षों में और सटीक रूप से मैप होंगे। नेगेटिव मार्किंग रिसर्च इकोसिस्टम में एक ‘डिटरेंस इफेक्ट’ बनाएगी—कमजोर/संदिग्ध प्रकाशन से दूरी और पारदर्शिता की संस्कृति की ओर धक्का।

10 साल में NIRF ने एक व्यवहारिक आदत बना दी है—निर्णय डेटा से लो। छात्र को बेहतर चुनाव, संस्थान को सुधार का रास्ता, सरकार को नीति का आधार और उद्योग को टैलेंट का नक्शा—यह चारों धागे अब एक सिरे से बंधे हैं। 2025 की नई श्रेणियां और कड़े मानदंड उसी धागे को और मजबूत करते हैं—जहां गुणवत्ता, समावेशन और जिम्मेदारी साथ-साथ चलते हैं।