नंगल, 18 जनवरी, मीडिया कोप्स:- श्री आनंदपुर साहिब से कांग्रेस के उम्मीदवार राणा के.पी. सिंह इस बार पार्टी की अंदरूनी कलह का शिकार हो सकते हैं। हालांकि जीत हार की बात करना अभी बहुत जल्दी होगा क्योंकि भाजपा द्वारा अभी तक अपने उम्मीदवार का नाम घोषित नहीं किया गया है। हालांकि इस बार जीत हार का अंतर पिछले चुनावों की अपेक्षा बहुत कम रहेगा जिससे सीधा नुकसान राणा के.पी. सिंह को होगा। इस बार जहां अंदुरुनी कलह नुकसानदायक होगी वहीं विरोधी पार्टी में उनकी मित्रता उनको लाभ भी पहूंचा सकती है पर यह लाभ किस स्तर पर और कितना होगा यह समय बताएगा।
कौन से कांग्रेसी नेता बन सकता है राणा के.पी. सिंह की हार का कारण:-
श्री आनंदपुर साहिब विधानसभा क्षेत्र की बात करें तो यहां एक बड़ा गुट है जो राणा के.पी. सिंह का विरोध कर रहा है जिसमें डॉ. अच्छर शर्मा जिन्हें हाल ही में जिला यूथ कांग्रेस का प्रधान नियुक्त किया गया था और पिछले समय में इन्होंने अपने गुट को क्षेत्र की राजनीति में इतना मजबूत कर लिया है कि यह किसी को भी हराने और जिताने का दम रखते है। पिछले लंबे समय से यह अपने साथियों के साथ खुलकर हर मंच पर राणा के.पी. सिंह का विरोध करते रहे हैं। डॉ. अच्छर की माने तो स्पीकर राणा के.पी. सिंह के सत्ता में रहते हुए किए गए उनके कर्म ही उनकी हार का सबसे बड़ा कारण बनेंगे।
किस की मदद से पहूंच सकते हैं जीत के करीब:-
अगर राणा के.पी. सिंह की जीत का आंकलन किया जाए तो इस बार फिर अकाली दल के नेताओं से उनकी मित्रता उनकी जीत का कारण बन सकती है। श्री आनंदपुर साहिब की सीट को बीएसपी को देने के पीछे भी मित्रता का यही समीकरण सामने आ रहा है। इससे लगता है कि अकाली दल बीएसपी के उम्मीदवार के साथ चल तो रहा है पर वोट में तब्दील होगा यह बड़ा सवाल है। श्री आनंदपुर साहिब में अकाली दल अगर जीत के लिए लड़ाई लड़ता तो शायद यह सीट बीएसपी को कभी न दी जाती अपितु यहां से अकाली दल के मीत प्रधान टिक्का यशवीर चंद पर दांव खेलती जोकि जीत के प्रबल दावेदार थे। वहीं श्री आनंदपुर साहिब से कांग्रेस के उम्मीदवार राणा के.पी. सिंह और रोपड़ से अकाली उम्मीदवार डॉ. दलजीत सिंह चीमा की मित्रता सिर्फ अपनी सीट जीतने की राजनीति तक ही सीमित है जो शायद इस बार दोनों सीटों पर भारी भी पड़ सकती है। इन दोनों सीटों पर विरोधी अगर मजबूती से चुनाव लड़ेंगे तो इन दोनों नेताओं को हराना खास मुश्किल भी नहीं होगा।
